शेयर बाजार क्या है?
शेयर का सीधा सा अर्थ होता है हिस्सा। शेयर बाजार की भाषा में बात करें तो शेयर का अर्थ है कंपनियों में हिस्सा। उदाहरण के लिए एक कंपनी ने कुल 10 लाख शेयर जारी किए हैं। आप कंपनी के प्रस्ताव के अनुसार जितने अंश खरीद लेते हैं आपका उस कंपनी में उतने का मालिकाना हक हो गया जिसे आप किसी अन्य खरीददार को जब भी चाहें बेच सकते हैं। आप 100 से लेकर अधिकतम शेयर खरीद सकते हैं।
कंपनी जब शेयर जारी करती है उस वक्त किसी व्यक्ति या समूह को कितने शेयर देना हैं यह उसका विवेकाधीन अधिकार है। बाजार से शेयर बाजार खरीदने/बेचने के लिए कई शेयर ब्रोकर्स होते हैं जो उनके तय पारिश्रमिक (लगभग 2 फीसदी) लेकर अपने ग्राहकों को यह सेवा देते हैं।
इन कंपनियों के शेयरों का मूल्य मुंबई शेयर बाजार (बीएसई) में दर्ज होता है। सभी कंपनियों का मूल्य उनकी लाभदायक क्षमता के अनुसार कम-ज्यादा होता है। इस पूरे बाजार में नियंत्रण भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) का होता है। इसकी अनुमति के बाद ही कोई कंपनी अपना प्रारंभिक निर्गम इश्यू (आईपीओ) जारी कर सकती है।
प्रत्येक छमाही या वार्षिक आधार पर कंपनियां लाभ होने पर अंशधारकों को लाभांश भी देती हैं। और कंपनी की गतिविधियों की जानकारी से भी रूबरू कराती है।
शेयर बाजार में लिस्टेड होने के लिए कंपनी को बाजार से लिखित समझौता करना पडता है, जिसके तहत कंपनी अपनी हर हरकत की जानकारी बाजार को समय-समय पर देती रहती है, खासकर ऐसी जानकारियां, जिससे निवेशकों के हित प्रभावित होते हों। इन्हीं जानकारियों के आधार पर कंपनी का मूल्यांकन होता है और इस मूल्यांकन के आधार पर मांग घटने-बढ़ने से उसके शेयरों की कीमतों में उतार-चढाव आता है। अगर कोई कंपनी लिस्टिंग समझौते के नियमों का पालन नहीं करती, तो उसे डीलिस्ट करने की कार्रवाई सेबी करता है।
कैसे होती है सेंसेक्स में उतार-चढ़ाव की गणना
भारतीय शेयर बाजार में इन दिनों उठा पटक जारी है। एक समय 20,000 अंक से ऊपर के रिकार्ड स्तर पर पहुंचने के बाद शेयर बाजार 15,000 अंक तक लुढ़क चुका है और इससे निवेशकों में हड़कंप मचा हुआ है। हम अक्सर शेयर बाजार में अंकों के चढ़ने और उतरने की चर्चा करते हैं, जैसे शेयर बाजार 200 या फिर 300 अंक ऊपर या नीचे गिर गया। पर क्या हम यह जानते हैं कि शेयर बाजार के ऊपर उठने या फिर नीचे गिरने की गणना कैसे की जाती है।
इस अंक में हम यही बताने की कोशिश करेंगे कि आखिर शेयर बाजारों में उतार चढ़ाव का आकलन कैसे किया जाता है। देश में मुख्य रूप से दो शेयर बाजार हैं: मुंबई स्थित बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई)। बीएसई में सूचीबद्ध कंपनियों के प्रदर्शन को सेंसेक्स से बताया जाता है जबकि एनएसई में इसे निफ्टी के नाम से जाना जाता है।
अगर हम कहते हैं कि सेंसेक्स ऊपर गया तो इसका मतलब होता है कि बीएसई में शामिल अधिकांश कंपनियों के शेयरों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। वहीं ठीक इसी तरह सेंसेक्स के नीचे लुढ़कने का मतलब होता है, इसमें शामिल कंपनियों के शेयरों के भाव नीचे गिरना।
सेंसेक्स का आकलन
बीएसई में सचीबद्ध 30 कंपनियों के शेयरों के प्रदर्शन के आधार पर सेंसेक्स का निर्धारण किया जाता है। इसके आकलन के लिए मुक्त बाजार पूंजीकरण विधि का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि यहां ध्यान रखना चाहिए कि सेंसेक्स के आकलन को सटीक बनाने के लिए समय समय पर इन 30 कंपनियों में बदलाव किया जाता है। अब इस तकनीक को जानने के पहले यह समझते हैं कि बाजार पूंजीकरण क्या है?
बाजार पूंजीकरण
शेयर के आधार पर किसी कंपनी का कुल मूल्य ही उस कंपनी का बाजार पूंजीकरण कहलाता है। किसी कंपनी का बाजार पूंजीकरण पता करने के लिए उस कंपनी के जारी किए गए कुल शेयरों की संख्या को कंपनी के एक शेयर के भाव से गुना कर दिया जाता है। कंपनी के बाजार पूंजीकरण के आधार पर ही यह तय किया जाता है कि कंपनी मिड-कैप, स्मॉल-कैप या फिर लार्ज-कैप है। बाजार पूंजीकरण को समझने के बाद हम मुक्त बाजार पूंजीकरण को समझने की कोशिश करेंगे।
मुक्त बाजार पूंजीकरण
किसी कंपनी के शेयर विभिन्न किस्म के निवेशकों के पास होते हैं। इनमें से कुछ शेयरों पर सरकार का कब्जा हो सकता है तो कुछ पर कंपनी के संस्थापक या फिर निदेशकों का। अब मुक्त या फ्री फ्लोट शेयर उन्हें कहते हैं जिनका कारोबार खुले बाजार में किया जाता है। यानी जिन्हें कोई भी निवेशक खरीद सकता है।
जब हम सेंसेक्स का आकलन करते हैं तो हम दरअसल इन्हीं शेयरों की चर्चा कर रहे होते हैं। मुक्त शेयर ऐसे शेयर होते हैं जिन पर कंपनी के संस्थापक, निदेशक या मालिक का कोई हक नहीं होता, जिनपर किसी व्यक्ति या इकाई की होल्डिंग्स का हक नहीं होता। जिनपर सरकार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), निजी कारोबारी इकाइयों, एसोशिएट या समूह कंपनियों कर्मचारी वेलफेयर ट्रस्ट का हिस्सा न हो।
साथ ही ऐसे शेयर जो लॉक्ड इन की श्रेणी में आते हैं और जिन्हें आम निवेशकों के लिए जारी नहीं किया जाता है, वे भी मुक्त शेयर नहीं कहलाते। हर कंपनी को बीएसई को संपूर्ण रिपोर्ट सौंपनी होती है कि उसके कितने शेयर किन किन लोगों के पास हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर बीएसई तय करती है कि कंपनी के मुक्त शेयर कितने हैं और कंपनी का मुक्त बाजार पूंजीकरण कितना है।
पूंजी बाजार का क्या कार्य है?
पूंजी बाजार अर्थव्यवस्था में पूंजी निर्माण को बढ़ाता है और इसमें शामिल हैं –
प्राथमिक बाजार एक ऐसा स्थान है जहां कंपनियों के नए प्रस्तावों को एक आरंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (आईपीओ) या अधिकार जारी करने के रूप में क्रियान्वित किया जाता है।
द्वितीयक बाजार एक ऐसा बाजार है जहां प्रतिभूतियों को प्राथमिक बाजार में जनता के लिए पेश किए जाने के बाद ट्रेड किया जाता है और/या स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध होता है। अधिकांश ट्रेडिंग इसी बाजार में की जाती है जिसमें इक्विटी बाजार और ऋण बाजार शामिल हैं।
एक इक्विटी शेयर क्या है?
एक इक्विटी शेयर स्वामित्व के प्रारूप को प्रदर्शित करता है। ऐसे एक शेयर का धारक कंपनी का एक सदस्य होता है और उसके पास मतदान का अधिकार होता है।
इसमें क्या जोखिम हैं?
इक्विटी शेयर "उच्च जोखिम, उच्च रिटर्न निवेश" होते हैं। इक्विटी निवेश और सभी अन्य निवेश विकल्पों में प्रमुख अंतर यह है कि जहां अन्य विकल्पों जैसे बैंक जमा, लघु बचत योजनाओं, डिबेंचर, बांड आदि से मिलने वाला लाभ निर्धारित और निश्चित होता है, वहीं इक्विटी निवेशों से होने वाली कमाई बेहद अनिश्चित और विविध होती है। सही समय पर ली गई एक अच्छी स्क्रिप काफी अच्छा रिटर्न दिला सकती है, अन्यथा रिटर्न बेहद कम भी हो सकता है या यह ऋणात्मक भी हो सकता है, यानी निवेश किया गया फ़ंड स्वयं भी धीरे धीरे ख़त्म हो सकता है। संक्षेप में, यदि स्थिर आय श्रेणी साधनों में निवेश काफी हद तक सुरक्षित और जोखिम मुक्त होता है, तो इक्विटी और संबंधित क्षेत्रों में निवेश जोखिम भरा माना जा सकता है।
लाभांश क्या है?
लाभांश, कंपनी द्वारा अपने निवेशकों में वितरित लाभ का एक हिस्सा होता है। इसे प्रायः शेयर अंकित मूल्य या पेड-अप वैल्यू (चुकता मूल्य) के प्रतिशत के रूप में घोषित किया जाता है।
एक बोनस शेयर क्या है?
कंपनियों द्वारा अपने शेयरधारकों के लिए पिछले वर्षों में अर्जित संचित लाभों के पूंजीकरण द्वारा निःशुल्क में जारी किए गए एक शेयर को बोनस शेयर कहा जाता है।
एक बांड क्या है?
एक बांड, किसी कंपनी या सरकार द्वारा इसके उधारदाताओं के लिए जारी किया गया एक वचनपत्र होता है। एक बांड ऋण का वह साक्ष्य है, जिस पर जारीकर्ता कंपनी बांडधारक को प्रायः निर्दिष्ट समयांतरालों के लिए ब्याज की एक निर्दिष्ट राशि का भुगतान करने का वादा करती है, और समाप्ति तिथि पर मूल ऋण चुकाने का वादा करती है। एक बांड निवेशक जारीकर्ता को धन उधार देता है और बदले में, जारीकर्ता एक निर्दिष्ट परिपक्वता तिथि पर ऋण राशि चुकाने का वादा करता है।
एक डिबेंचर क्या है?
यह प्रायः एक निश्चित ब्याज दर के साथ कंपनी द्वारा जारी किया गया एक बांड है जिसका भुगतान सामान्यतः निर्दिष्ट तिथियों पर छमाही रूप से किया जाता है और मूलधन का भुगतान एक विशेष तिथि पर डिबेंचरों को रिडीम करने (भुनाने द्वारा) पर किया जाता है। डिबेंचर्स को सामान्यतः डिबेंचर धारक के पक्ष में कंपनी की संपत्ति के एवज में सुरक्षित/प्रभारित किया जाता है।
एक स्टॉक एक्सचेंज क्या है?
एक स्टॉक एक्सचेंज वह स्थान है जहां क्रेता और विक्रेता एक व्यवस्थित ढंग से शेयरों में ट्रेड करने के लिए मिलते हैं। वर्तमान समय में देश में 25 मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज हैं जो प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 द्वारा शासित हैं।
मैं कौन से शेयर खरीद सकता हूं?
आप वे शेयर खरीद सकते हैं जो किसी भी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध हों।
खरीदना और बेचना क्या है?
ऐसे कई प्रकार के ऑर्डर हैं जिनके बारे में आप एक ब्रोकर को निर्देशित कर सकते हैं। सबसे सामान्य प्रकार का ऑर्डर, जो नियमित क्रय या विक्रय ऑर्डर है, उसे मार्केट (बाजार) ऑर्डर कहा जाता है। ऑर्डर का एक अन्य प्रकार एक लिमिट (सीमित) ऑर्डर है जिसमें आप ब्रोकर से केवल तभी ट्रेड करने के लिए कह सकते हैं यदि कीमत एक विशिष्ट स्तर तक पहुंचती है। एक स्टॉप (रोक) ऑर्डर में, आप महत्वपूर्ण हानि को रोकने के लिए ब्रोकर से अपने शेयरों को बेचने के लिए कह सकते हैं यदि मूल्य एक निश्चित स्तर तक गिर जाता है क्योंकि यदि यह उस स्तर तक गिरता है तो इसके आगे और गिरने की संभावना है और आपकी हानि बढ़ने की संभावना है।
मैं अपने ऑर्डर कैसे करुं?
फ़ोन के माध्यम से या जियोजित के ऑफ़िस में व्यक्तिगत रूप से आने के द्वारा या जियोजित द्वारा प्रदान की गई किसी भी अन्य सुविधा जैसे इंटरनेट ट्रेडिंग के माध्यम से ट्रेडिंग की जा सकती है। डीलर (जियोजित का कर्मचारी, जिसे स्टॉक एक्सचेंज ऑर्डर सिस्टम में निवेशकों के ऑर्डर इनपुट करने के लिए रखा गया है), कॉल करने वाले व्यक्ति की प्रामाणिकता की जांच करने और खाते में उपलब्ध मार्जिन की जांच करने के बाद स्टॉक एक्सचेंज सिस्टम में ऑर्डर दर्ज करेगा।
बुलिश (बढ़त) और बियरिश (मंदी) के रुझान का क्या तात्पर्य है?
जब बाजार ऊपर जाता है तो इसे बुलिश (बढ़त) का रुझान और जब बाजार नीचे जाता है तो इसे बियरिश (मंदी) का रुझान कहा जाता है।
एक पॉजिशन (स्थान) लेना क्या है?
जब आप किसी स्टॉक पर कार्य करते हैं और इसे खरीदते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप एक स्थान ले रहे हैं। पॉजिशन, अनुकूल मूल्य उतार-चढ़ाव की प्रत्याशा में एक निवेश में लगाए गए धन की राशि है। पॉजिशन दो प्रकार के होते हैं :-
लांग पॉजिशन (दीर्घ स्थितियां) वे हैं जिसका अधिकांश लोग प्रयोग करते हैं। जब आप लांग पॉजिशन खरीदते हैं, तो इसका अर्थ है कि आपको मूल्य में वृद्धि होने की आशंका है, और इस तरह आप लाभ प्राप्त करते हैं। लोग प्रायः बाद में उच्च कीमतों पर बेचने की उम्मीद से वर्तमान मूल्यों पर शेयर खरीदते हैं और इस प्रकार लाभ प्राप्त करते हैं।
शार्ट पॉजिशन (लघु स्थितियां) पेचीदा होती हैं। जब आप शार्ट पॉजिशन खरीदते हैं, तो आपको कीमत में गिरावट की आशंका होती है और गिरावट आपके लाभ का स्रोत है। शेयरों को पहले बेचा जाएगा और बाद में मूल्य गिरने पर उन्हें पुनः खरीदा जाएगा और वापस कर दिया जाएगा और अंतर, निवेशक का लाभ होता है। बेशक, निवेशक के लिए जिसने शेयर उधार लिए हैं, मूल्य के प्रत्याशा के समान न बढ़ने/घटने का जोखिम होता है, ऐसी स्थिति में वह शेयरों की पुनर्खरीद में नुकसान उठा सकते हैं।
इंडेक्स (सूचकांक) क्या है?
इंडेक्स (सूचकांक) एक स्टॉक मार्केट (शेयर बाजार) का वह सूचक है जिसे एक संपूर्ण बाजार या बाजार से ली गई प्रतिभूतियों के एक नमूने पर आधारित बाजार के एक खंड के प्रदर्शन की एक सांख्यिकीय माप के रूप में बनाया जाता है। इस प्रकार, एक इंडेक्स, बाजार के एक खंड या बाजार के समग्र प्रदर्शन का मूल्यांकन करने का एक साधन है। एक इंडेक्स समग्र बाजार उतार-चढ़ाव की माप है। एक सामान्य बाजार सूचक होने के अलावा, इंडेक्स, व्यक्तिगत पोर्टफ़ोलियो के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए प्रयुक्त एक मानक है। पेशेवर धन प्रबंधक हमेशा बाजार में बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करेंगे, यानी वे हमेशा इंडेक्स की तुलना में बेहतर करने की कोशिश करेंगे। उदाहरण के लिए, यदि एक पोर्टफ़ोलियो का मूल्य 10% बढ़ता है और वहीं इंडेक्स केवल 5% बढ़ता है, तो इसका अर्थ है कि पोर्टफ़ोलियो बाजार से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है।
हमारे यहां 2 प्रसिद्ध सूचकांक हैं, नामतः-
बीएसई सेंसिटिव (बीएसई सेंसेक्स) और
एस एंड पी निफ़्टी 50 (निफ़्टी)
बीएसई सेंसेक्स में 30 बड़ी पूंजी वाली (लार्ज- कैप) कंपनियां शामिल हैं। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, यह बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) पर एक प्रमुख इंडेक्स है।.
निफ़्टी में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर 50 बड़ी पूंजी वाली (लार्ज- कैप) कंपनियां शामिल हैं।
एक डिपॉजिटरी क्या है?
एक डिपॉजिटरी की तुलना एक बैंक से की जा सकती है। एक डिपॉजिटरी, इलेक्ट्रॉन
ब्रोकरेज के अलावा वे अतिरिक्त प्रभार/शुल्क कौन कौन से हैं, जो निवेशक पर लगाए जा सकते हैं?
ट्रेडिंग सदस्य को निम्न का भुगतान करना पड़ सकता है:
प्रतिभूति लेनदेन कर
लागू सेवा कर
जी एस टी
एनएसई द्वारा लिए गए लेनदेन प्रभार (शुल्क), स्टांप ड्यूटी और लेनदेन से सीधे संबंधित अन्य प्रभार।
एनएसई द्वारा लिए गए लेनदेन प्रभार (शुल्क), स्टांप ड्यूटी और लेनदेन से सीधे संबंधित अन्य प्रभार।
मार्जिन का भुगतान कैसे किया जाता है?
एक्सचेंज, समय-समय पर मार्जिन के नियम निर्धारित करता है, जिनकी गणना वर्तमान में जोखिम मॉडल के मूल्य के आधार पर की जाती है। निवेशक द्वारा ऑर्डर देने से पहले मार्जिन का भुगतान किया जाना चाहिए।
निवेशक के क्या दायित्व हैं?
निम्न दायित्व हैं –
एक उचित सदस्य-संघटक अनुबंध पर हस्ताक्षर करने का
एक मान्य अनुबंध या खरीद/बिक्री नोट रखने का
समय पर प्रतिभूति डिलिवर करने और भुगतान करने का
ट्रेड से पहले मार्जिन प्रदान करने का
निवेशक के क्या अधिकार हैं?
निम्नलिखित प्राप्त करने का अधिकार –
मूल्य/लगाए गए ब्रोकरेज शुल्क का प्रमाण, समय पर पैसा/शेयर, खातों के विवरण और ट्रेडिंग सदस्य से कंट्रैक्ट नोट।
कर की दृष्टि से भारतीय इक्विटी में निवेश करने के निहितार्थ क्या हैं?
निवेश लाभों पर कर की दरों को दीर्घावधि और अल्पावधि पूंजी लाभों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
दीर्घावधि पूंजी लाभ
वे दीर्घावधि निवेश जिन्हें 12 महीने से अधिक के लिए होल्ड किया जाता है, दीर्घावधि पूंजी परिसंपत्तियां कहलाते हैं। ऐसी परिसंपत्तियों की बिक्री से प्राप्त लाभ को दीर्घावधि पूंजी लाभ (एलटीसीजी) कहा जाता है जिस पर नवीनतम बजट अधिसूचना के अनुसार कोई भी कर नहीं लगेगा।
अल्पावधि पूंजी लाभ
वे शेयर जिन्हें 12 महीने से कम के लिए होल्ड किया जाता है, अल्पावधि पूंजी परिसंपत्तियां कहलाते हैं, जिन पर नवीनतम बजट अधिसूचना के अनुसार 10% कर लगेगा।
एक पोर्टफ़ोलियो मैनेजर किसे कहते है?
कोई भी व्यक्ति जो एक ग्राहक के साथ एक अनुबंध या व्यवस्था के अनुसार, ग्राहक के फ़ंड या प्रतिभूतियों के पोर्टफ़ोलियो के प्रबंधन या प्रशासन के लिए सलाह देता है या निर्देशन करता है या ग्राहक की ओर से संचालन करता है (चाहे एक विवेकाधीन पोर्टफ़ोलियो मैनेजर हो या न हो), उसे पोर्टफ़ोलियो मैनेजर कहते है। जियोजित एक ‘सेबी’ पंजीकृत पोर्टफ़ोलियो मैनेजर (पंजीकरण संख्या – आईएनपी 000000316) है जो उन निवासियों को, जो न्यूनतम 10 लाख रुपये का निवेश कर सकते हैं और उन गैर-निवासियों को, जो न्यूनतम 25 लाख रुपये का निवेश कर सकते हैं, विवेकाधीन पोर्टफ़ोलियो प्रबंधन सेवाएं प्रदान करता है।
शेयर बाजार में निवेश
यदि आपको शेयर बाजार के बारे में कम जानकारी है अथवा आप इस बाजार के नये खिलाड़ी हैं या आप चाहते तो हैं कि बाजार में निवेश करें मगर जानते नहीं कि क्या करें और कैसे करें तो आज हम आपको कुछ टिप्स देते हैं:
टिप्स से दूर रहें: आप भी कहेंगे कि यह क्या घालमेल है। साथ ही कह रहे हैं कि मैं आपको टिप्स देता हूं और साथ ही कह रहें हैं कि टिप्स से दूर रहें। वास्तव में मैं आपको किन कंपनियों के शेयरों में निवेश करें ऐसे टिप्स नहीं देने वाला। यहां मैं आपको यह बता रहा हूं कि कैसे शेयर बाजार में निवेश करें। तो सबसे पहली बात मित्रों, रिश्तेदारों और ब्रोकरों के बताये टिप्स पर अथवा बाजार मैं फैली अफवाहों के आधार पर निवेश न करें। यह बहुत ही खतरनाक हो सकता है।
स्वयं को शिक्षित करें: बैलेंश शीट तथा कंपनियों के नतीजों को पढ़ना और समझना सीखें। यदि आपकी शिक्षा कॉमर्स स्ट्रीम से नहीं है तो थोड़ा और अधिक सावधान रहें। बाजार के बारे में अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करें। नियमित रूप से इक्नॉमिक टाइम्स जैसे समाचार पत्र पड़ें और CNBC आवाज जैसे चैनल देखें। इसके अलावा इंटरनेट पर निवेश संबधी जानकारियां एकत्रित करें। जब आपको बाजार के बारे में आत्मविश्वास जागने लगे तो भी निवेश करने से पहले दो तीन कंपनियों को चुन लें जहां आपको लगे कि निवेश करना सही रहेगा। उसके बाद उन कंपनियों के भावों पर नियमित नजर रखें। कम से कम एक महीना अपनी इन कंपनियों पर नजर रखें। यदि लगे कि आपका चुनाव सही था तो आप बाजार में जाने के बारे में सोच सकते हैं।
शुरुआत कम पूंजी से करें: शुरुआत में नाम मात्र का निवेश करें और अनुभव प्राप्त करें। एकदम से बड़ी रकम दांव पर न लागायें। वैसे भी बाजार में एक साथ बड़ा निवेश करने से बचना चाहिये और अपनी पूंजॊ का एक एक हिस्सा नियमित रूप से निवेश करना चाहिये।
निवेश में धोखे
आज आपको कुछ साधारण किस्म के धोखों से बचने के उपायों के बारे में बताते हैं जो कि अक्सर आपके एजेंट Agents कर जाते हैं।
मेरे एक मित्र ने निवेश Invest तो किया था म्यूचल फंड Mutual Fund में मगर एजेंट Agent ने उन्हें यूलिप Ulip बेच दिया। कई बार ऐसा होता है कि एजेंट Agent सपने तो किसी और प्लान या प्रोडक्ट के दिखाते हैं मगर जब वास्तव में आपके पास निवेश के कागज पहुंचते हैं तो उसमें कुछ और ही निकलता है। कई निवेशक Investors तो आलस के कारण या जानकारी न होने के कारण प्राप्त कागजों को देखते भी नहीं कि उन्हें जो निवेश के कागजात मिले हैं उनमें सब कुछ सही है कि नहीं।
आपको हमने पहले भी इस बात के लिये आगाह किया था कि कैसे कुछ एजेंट Agent बड़े बड़े वादे करके कुछ भी बेच देते हैं। यह भी बताया था कि किस तरह से अपने एजेंट का चुनाव करें। इसके बाद जब आप कोई निवेश करते हैं निवेश के कगज प्राप्त होने के बाद क्या करना है आज हम आपको वही बताना चाहते हैं।
जिस स्कीम में निवेश किया था क्या यह वही है
बहुत जरूरी है यह जांचना कि आपने जिस स्कीम में देखभाल कर और अपनी जरूरत के हिसाब से निवेश किया था क्या प्राप्त कागजात उसी स्कीम में निवेश हुए हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि एजेंट ने अपनी कमीशन के चक्कर में आपको कोई ऐसा प्लान दे दिया हो जो आपकी जरूरतों के मुताबिक ही न हो। यहां म्यूचल फंड और यूलिप (ULIP) में अंतर को समझना भी जरूरी है। म्यूचल फंड Mutual Funds मध्यम समय (पांच से सात वर्ष) के लिये निवेश के लिये उत्तम हैं और यूलिप Ulip दस साल या उससे अधिक समय के लिये। यूलिप Ulip में पहले वर्ष में ज्यादा चार्जेस कटते हैं मगर लम्बी अवधी में यूलिप म्यूचल फंड से भी ज्यादा फायदेमंद साबित होता है।
बाकी जानकारी भी देखें
अच्छी तरह से देख लें कि आपका नाम, आपका पता, जन्म की तारीख, संपर्क नंबर, नामित व्यक्ति (nominee) का नाम जैसी जरूरी जानकारी सही से भरी है कि नहीं। याद रखें कि यदि आपने कभी कोई बीमा या यूलिप लिया है और इनमें से कोई जानकारी सही नहीं है तो क्लेम लेने में कई तरह की दिक्कतें भी आ सकती हैं। कुछ कंपनियां आपके द्वारा भेजे गये फार्म की कापी भी करवा कर आपको भेजतीं हैं उसे भी अच्छी तरह जांच लें कि आपके फार्म भरने के बद एजेंट ने उस में कोई बदलाव तो नहीं किये हैं
प्लान के नियम व शर्तें
बहुत लंबी, उबाउ और कानूनी भाषा मे लिखे यह नियम व शर्तें जरूर पढ़ें। कुछ समझ न आये तो किसी जानकार से उसके बारे में जानने से परहेज न करें। अधिकतर कंपनियां कस्टमर्स केयर नंबर भी देतीं हैं वहां संपर्क करें या स्वंय कंपनी के कार्यालय/शाखा में जायें।
शुल्क तथा प्रभार
यह भी देख लें कि जैसा बताया गया था क्या शुल्क तथा प्रभार वैसे ही लगे हैं या ज्यादा लगे हैं। भविष्य में लगने वाले प्रभारों की भी जानकारी लें।
इस सब को देखने के बाद और सब कुछ सही पाने के बाद अपने कागजों को संभाल कर रखें। हो सके तो किसी प्लास्टिक की फाइल या फोल्डर में ही रखें। लकड़ी की अलमारी के बजाये लोहे की अलमारी में रखना ज्यादा सुरक्षित है। जहां भी रखें अपने घर के जिम्मेदार व्यक्तियों को अवश्य बतायें। अपने एजेंट का विजिटिंग कार्ड अपने निवेश के कागजों के साथ रखें जिससे कि समय असमय संपर्क करने में आसानी रहे।
अगली बार आपको बतायेंगे कि यदि आपको एजेंट आपको धोखा दे जाये तो उससे कैसे निबटें।
निवेश के लिये पसन्दीदा शब्द है - यूलिप
आजकल लम्बी अवधि के लिये निवेश करने वालों के लिये यूलिप ULIP (Unit-Linked Insurance Plan) एक पसन्दीदा शब्द है। इसके उचित कारण भी हैं।
यूलिप ULIP निवेश का एक बहुत अच्छा जरिया है यदि आप लम्बी अवधि के लिये निवेशित रहना चहते हैं यानि 10 से 20 वर्षों के लिये । यदि आप कम अवधि के लिये निवेश करना चाहते हैं तो बेहतर है कि किसी कंसल्टेंट की सहायता से म्यूचल फंड Mutual Fund में निवेश करें।
यूलिप और म्यूचल फंड में मुख्य अंतर है अधिभरों (charges) का ढांचा। यूलिप और म्यूचल फंड में बाकी सब समान होते हुए भी यूलिप में निवेश बेहतर हो सकता है अधिभारों में कमी के कारण । FMC फंड मेनेजमेंट चार्ज (इसकी हिंदी शायद होगी कोष प्रबंधन अधिभार) आमतौर पर यूलिप में 1.5% (किसी किसी कम्पनी में यह 0.8% तक कम होता है) होता है जबकी म्यूचल फंड में आमतौर पर FMC 2.5% के आसपास होता है।
इसीलिये लम्बी अवधि में जब आपका फंड बहुत बड़ा हो जाता है तो 1% का अंतर भी बहुत मायने रखता है और इससे यूलिप के शुरुआती खर्चों की भी आपूर्ती हो जाती है।
यूलिप और म्यूचल फंड में निवेश के दो उदाहरण लेते हैं जो कि 10% की समान दर से बढ़ रहे हैं।
एक आदमी 20 वर्ष के लिये 5 लाख रु के बीमा के साथ यूलिप प्लान लेता है जिसमें वह 1 लाख रु प्रति वर्ष निवेश करता है यदि उसका निवेश 10% की दर से बढ़ता है तो मियाद खत्म होने पर उसे रु 52,21,205/- मिलेंगे |
यही निवेश यदि म्यूचल फंड में किया जाता है और साथ में समान राशि की टर्म इंशोरेंस भी ली जाती है तो 10% की वृद्धी दर पर सभी समयोजनों के बाद मियाद खत्म होने पर रु 48,25,785/- मिलेंगे।
इस प्रकार आप देख सकते हैं कि 1% का अधिभारों में छोटा सा अंतर आपके धन को कितना अधिक बढ़ा सकता है।
यूलिप में आपको बीमा प्लान, बच्चों के प्लान तथा पेंशन प्लान भी मिल जायेंगे। आप इनमें रु 1500/- प्रति माह के न्यूनतम निवेश से भी शुरुआत कर सकते हैं। अधिकतर कम्पनियां ECS की सुविधा भी प्रदान करती हैं।
कैसे समझें नतीजे
आज आईटी यानी सूचना तकनीक की विशाल कम्पनी इन्फोसिस Infosys ने अपने तिमाही नतीजे पेश किये। आइये जाने कि इन नतीजों को कैसे समझा जाये।
जहां बैलेंस शीट (आपको जानकर हैरानी होगी कि बैलेंश शीट को हिंदी में चिट्ठा भी कहा जाता है) कम्पनी की सेहत का आईना होती है वहीं प्रॉफिट एण्ड लॉस एकाऊंट (लाभ हानि खाता) कम्पनी की प्रगति का मापक होता है। उपर दिये लिंक से आप इन्फोसिस के तिमाही नतीजे विस्तार से पीडीएफ फाईल में डाऊनलोड कर सकते हैं अथवा यहां दी हुई इमेज फाईल से इसे समझ सकते हैं।
सॉफ्टवेयर सेवाओं एवं उत्पादों से आय
अधिकतर इस जगह मद होती है कुल बिक्री से आय (Income from Total Sale) : यहां आपको मिलेगी कम्पनी द्वारा दी गई तिमाही में की गई माल अथवा सेवाओं की बिक्री की रकम। कम्पनी कितनी गति से बढ़ (Growth कर) रही है यह इसी का सूचक है। यहां आप देखेंगे कि पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले इन्फोसिस लगभग 51% बढ़ी है।
सॉफ्टवेयर संवर्धन लागत
अधिकतर इस जगह मद होती है कुल क्रय लागत: यहां आपको मिलेगी कच्चे माल अथवा सेवाओं की आपूर्ति पर खर्च की गयी रकम। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि लागत की रकम यदि बिक्री की रकम के मुकाबले कम अनुपात में बढ़ती है तो यह कम्पनी के सेहत के लिये अच्छा है। यहां इन्फोसिस की लागत 53.89% से बढ़ी है।
कुल लाभ
कुल लाभ बिक्री और क्रय का अन्तर है। यहां कुल लाभ 47% बढ़ा है।
प्रभावित खर्चे
यहां कच्चे माल के अलावा माल अथवा सेवाओं के उत्पादन पर किये गये अन्य सभी खर्चे लिये जाते हैं। ध्यान रहे कि यह खर्चे जरूरी नहीं कि माल के उत्पाद के अनुपात में ही बढ़ें। क्योंकि कुछ खर्चे जैसे कि बिलडिंग का किराया या स्टाफ की तन्ख्वाह का माल के उत्पाद से कोई सीधा संबंध नहीं होता है। यहां आने वाले मद इस पर भी निर्भर करते हैं कि कम्पनी किस क्षेत्र में कार्यरत है। इन्फोसिस के खर्चे 42% से बढ़े हैं।
ब्याज एवं अवमूल्यन
इन खर्चों का उत्पादन प्रक्रिया से कोई संबंध नहीं होता इसलिये इन्हे अलग से गिना जाता है। आयकर की गणना में भी इनका अलग से महत्व है। ब्याज उधार ली गई पूजी पर दिया जाता है। बड़ी पूंजीगत कम्पनियां जहां बड़ी रकम उधार की पूंजी से लगी होती है वहां इस मद का मह्त्व बढ़ जाता है और ब्याज की दरों में परिवर्तन कम्पनी के लाभ पर असरकारक हो सकता है। यहीं यह भी देखने वाली बात है कि जैसे जैसे कम्पनी अधिक लाभ कमा कर उधार चुकता करती जाती है ब्याज की रकम कम होती जाती है और लाभ बढ़ते जाते हैं। अवमूल्यन वास्तव में एक काल्पनिक खर्चा है और कम्पनी इसकी अदायगी नहीं करती।
अन्य आय
ध्यान रहे की छोटी और महत्वहीन सी यह रकम आपको बहुत बड़ा धोखा दे सकती है। कभी कभी कम्पनी अपने किसी पुराने निवेश, प्लांट अथवा सम्पत्ती को बेच कर मोटी रकम इस मद में कमा लेती है मगर इस मद में आई बढ़ोतरी वास्तव में कम्पनी की आय में स्थायी बढ़ोतरी नहीं करती। कई बार शुद्ध आय में असाधारण बढ़ोतरी देख कर आनन फानन में कोई शेयर खरीद लिया जाता है मगर यह जरूर जांच लेना चाहिये कि आय में यह बढ़ोतरी कम्पनी के वास्तविक कर्यकलापों के कारण हुई है या अन्य आय के द्वारा।
शुद्ध आय
यह वो रकम है जो करों को चुकाने के बाद कम्पनी के पास बचती है। हर निवेशक का वास्ता इस रकम से होता है। इस रकम का एक हिस्सा निवेशक को लाभांश के रूप मे मिलता है और शेष कम्पनी की पूंजी में जमा हो जाता है यानी इसे कम्पनी के विस्तार, उधार चुकाने अथवा दूसरी कम्पनियों का अधिग्रहण करने के लिये प्रयोग किया जा सकता है। यहां इन्फोसिस के शुद्ध लाभ में 51% की वृद्धि हुई है।
कैसे गिनें प्रति शेयर आय
यानि प्रति शेयर आय कैसे गिनी जाती है और इससे कंपनी की आर्थिक सेहत को कैसे जाना जाता है, आज इसके बारे में विचार करते हैं।
कंपनी की कुल शुद्ध लाभ से हर शेयर के हिस्से में कितनी रकम आयेगी उसे ही Earning per Share बोलग प्रति शेयर आय कहते हैं। इसे गिनेंगे
शुद्ध लाभ / कुल शेयरों की संख्या
यदि 10 करोड़ रु की पूंजी वाली कंपनी जिसके 10 रु की कीमत वाले 1 करोड़ शेयर हों और वह कंपनी 20 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाती है तो उसकी प्रति शेयर आय 20 रुपये होगी:
20 करोड़ / 1 करोड़ = 20
यदि कोई कंपनी केवल तिमाही नतीजे ही घोषित करती है तो उन नतीजों के आधार पर कंपनी के पूरे साल के प्रति शेयर आय की भी गणना की जा सकती है।
उपरोक्त उदाहरण में यदि कंपनी आने वाली तिमाही के लिये 6 करोड़ रु का शुद्ध लाभ घोषित करती है तो हम अंदाज लगा सकते हैं कि कंपनी की प्रति शेयर आय आने वाले साल में बढ़ कर 24 रु हो जायेगी। इसी प्रकार अर्धवार्षिक परिणामों को देख कर भी वार्षिक प्रति शेयर आय की भी गणना की जा सकती है।
इस बात का ध्यान रहे कि यदि कंपनी तेजी से विकास कर रही है या कंपनी का सीजनल काम है जो कि पूरे वर्ष एक सा नहीं रहता तो तिमाही नतीजों से वार्षिक प्रति शेयर आय की भविष्यवाणी गलत भी साबित हो सकती है।
एक बात और भी घ्यान देने लायक है कि यदि कंपनी ने वर्तमान तिमाही में कोई ऐसी बड़ी डील की है जिसके दोहराव की संभावना नहीं है तो उस डील से हुए लाभ या हानि समायोजित करके ही वार्षिक आय की गणना की जानी चाहिये।
ज्यादातर शेयरों की कीमतें चालू अथवा आने वाले साल के प्रति शेयर आय की संभावनाओं पर निर्भर करतीं हैं।
कोई भी शेयर बाजार में सस्ता है या मंहगा अथवा किसी शेयर की कीमतों में कितनी बढ़ौतरी की संभावनायें हैं इसे जानने का बहुत बड़ा मानक है प्रति शेयर आय EPS और प्रति शेयर कीमत अनुपात यानि P/E Ratio.
शेयरबाजार और बैल
शेयर बाजार और बैल मे क्या सम्बन्ध ? क्यों शेयर बाजार के समाचारों के साथ बैल को भी चित्रित किया जाता है।
शेयर बाजार की अपनी एक भाषा होती है। जो लोग यह सोचते हैं कि बाजार तेजी के रुख में रहेगा तो लाभ की आशा में वे और शेयर खरीदना चाहते हैं इसीलिये उन्हें तेजड़िये कहते हैं। जो सोचते हैं कि बाजार में कीमतें गिरेंगी वे शेयरों को बेचना चाहते हैं तो उन्हें कहते हैं मदड़िये। इन्ही तेजड़ियों को बाजार में बुल्स यानी बैल कहा जाता है तथा मंदड़ियों को बियर यानी भालू। इसी लिये जब भी बाजार में तेजी आती है तो अगले दिन सेंसेक्स के ग्राफ के साथ बैल को चित्रित किया जाता है और जब बाजार तेजी से गिरते हैं तो भालू का चित्र दिखाया जाता है। मान्यता है कि यह नाम इस जानवरों के हमला करने के तरीके से पड़ा। जब भी बैल हमला करता है तो अपने शिकार को नीचे से उठा कर उछाल देता है जबकि भालू अपने शिकार को हमेशा पंजों से नीचे की ओर दबाता है।
स्टॉक मूल्य हर दिन सेट कर रहे हैं कैसे?
किसी भी समय, किसी इक्विटी के मूल्य का निर्धारण आपूर्ति और मांग का परिणाम है. आपूर्ति किसी निश्चित समय पर बिक्री के लिए प्रस्तुत शेयरों की संख्या है. मांग बिल्कुल उसी समय निवेशक द्वारा खरीदने की इच्छा वाले शेयरों की संख्या है. शेयर की कीमत संतुलन हासिल करने और उसे बनाए रखने के लिए बदलती रहती है.
जब भावी खरीदारों की संख्या विक्रेताओं की संख्या से अधिक हो, तो मूल्य बढ़ता है.अत: उच्च विक्रय मूल्य से आकर्षित विक्रेता बाज़ार में प्रवेश करते हैं और खरीदार बाहर जाते हैं, जिससे खरीदारों और विक्रेताओं के बीच संतुलन हासिल होता है. जब विक्रेताओं की संख्या खरीदारों की संख्या से कम होती है, तो मूल्य गिर जाता है. अंतः खरीदार प्रवेश करते हैं और विक्रेता चले जाते हैं, दुबारा संतुलन हासिल होता है.
आई.पी.ओ ये शब्द मर्केट मे अनेक बार सुनने को मिलता है! आई.पी.ओ मे वे शेयर आते है, जो किसी शेयर धारक से न खरीद कर सीधे कम्पनी से खरीदे जाते है, इसे ही प्राइमरी मर्केट कह्ते है!वैसे बाद मे शेयरधारक इनमे क्रय- विक्रय करते है, और फिर वो सैकण्डरी मर्केट कहलाता है!
यदि औसत या कमजोर कम्पनी क आई.पी.ओ ज्यादा ऊची कीमत पर आता है, तो स्वभाविक है कि ज्यादा लोग शेयर नही खरीदेगे और मूल्य नीचे आयेगा, यदि अच्छी कम्प्नी का आई.पी.ओ कम या औसत मूल्य पर आता है! तो निश्चित ही शेयरो कि बिक्री अधिक होगी और कीमत भी बढेगी !
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई)
बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज भारत और एशिया का सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है। इसकी स्थापना १८७५ मे हुई थी। भारत को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजार में अपना श्रेष्ठ स्थान दिलाने में बीएसई की अहम भूमिका है। एशिया के सबसे प्राचीन और देश के प्रथम स्टॉक एक्सचेंज को -बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज सिक्युरिटीज कांट्रेक्ट रेगुलेशन एक्ट १९५६ के तहत स्थाई मान्यता मिली है
मैनेजिंग डायरेक्टर के नेतृत्व में डायरेक्टर्स बोर्ड द्वारा एक्सचेंज का संचालन होता है । इस बोर्ड में प्रतिष्ठित प्रोफेशनल्स, ट्रेडिंग सदस्यों के प्रतिनिधियों और सार्वजनिक प्रतिनिधियों का समावेश है । एक्सचेंज भारत के छोटे - बड़े शहरों में अपनी उपस्थिति के साथ राष्ट्रीय स्तर पर फैला हुआ है । एक्सचेंज में `ट्रेडिंग राइट' और `ओनरशिप राइट' एक दूसरे से अलग है । ऐसी परिस्थिती में निवेशकों के हितों पर विशेष सावधानी बरती जाती है । एक्सचेंज इक्विटी, डेब्ट तथा प्युचर्स और ऑप्शन के व्यापार के लिए ढांचा एवं पारदर्शक ट्रेडिंग सिस्टम सुनिश्चित करता है । बीएसई की आनलाइन ट्रेडिंग प्रणाली बेहतरीन गुणवत्तावाली है ।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज
यह भारत का सबसे बड़ा और तकनीकी रूप से अग्रणी स्टॉक एक्सचेंज है। यह मुंबई में स्थित है। इसकी स्थापना 1992 मे हुई थी। कारोबार के लिहाज से यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है। इसके वीसैट (VSAT) टर्मिनल भारत के 320 शहरों तक फैले हुए हैं।
शेयर का सीधा सा अर्थ होता है हिस्सा। शेयर बाजार की भाषा में बात करें तो शेयर का अर्थ है कंपनियों में हिस्सा। उदाहरण के लिए एक कंपनी ने कुल 10 लाख शेयर जारी किए हैं। आप कंपनी के प्रस्ताव के अनुसार जितने अंश खरीद लेते हैं आपका उस कंपनी में उतने का मालिकाना हक हो गया जिसे आप किसी अन्य खरीददार को जब भी चाहें बेच सकते हैं। आप 100 से लेकर अधिकतम शेयर खरीद सकते हैं।
कंपनी जब शेयर जारी करती है उस वक्त किसी व्यक्ति या समूह को कितने शेयर देना हैं यह उसका विवेकाधीन अधिकार है। बाजार से शेयर बाजार खरीदने/बेचने के लिए कई शेयर ब्रोकर्स होते हैं जो उनके तय पारिश्रमिक (लगभग 2 फीसदी) लेकर अपने ग्राहकों को यह सेवा देते हैं।
इन कंपनियों के शेयरों का मूल्य मुंबई शेयर बाजार (बीएसई) में दर्ज होता है। सभी कंपनियों का मूल्य उनकी लाभदायक क्षमता के अनुसार कम-ज्यादा होता है। इस पूरे बाजार में नियंत्रण भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) का होता है। इसकी अनुमति के बाद ही कोई कंपनी अपना प्रारंभिक निर्गम इश्यू (आईपीओ) जारी कर सकती है।
प्रत्येक छमाही या वार्षिक आधार पर कंपनियां लाभ होने पर अंशधारकों को लाभांश भी देती हैं। और कंपनी की गतिविधियों की जानकारी से भी रूबरू कराती है।
शेयर बाजार में लिस्टेड होने के लिए कंपनी को बाजार से लिखित समझौता करना पडता है, जिसके तहत कंपनी अपनी हर हरकत की जानकारी बाजार को समय-समय पर देती रहती है, खासकर ऐसी जानकारियां, जिससे निवेशकों के हित प्रभावित होते हों। इन्हीं जानकारियों के आधार पर कंपनी का मूल्यांकन होता है और इस मूल्यांकन के आधार पर मांग घटने-बढ़ने से उसके शेयरों की कीमतों में उतार-चढाव आता है। अगर कोई कंपनी लिस्टिंग समझौते के नियमों का पालन नहीं करती, तो उसे डीलिस्ट करने की कार्रवाई सेबी करता है।
कैसे होती है सेंसेक्स में उतार-चढ़ाव की गणना
भारतीय शेयर बाजार में इन दिनों उठा पटक जारी है। एक समय 20,000 अंक से ऊपर के रिकार्ड स्तर पर पहुंचने के बाद शेयर बाजार 15,000 अंक तक लुढ़क चुका है और इससे निवेशकों में हड़कंप मचा हुआ है। हम अक्सर शेयर बाजार में अंकों के चढ़ने और उतरने की चर्चा करते हैं, जैसे शेयर बाजार 200 या फिर 300 अंक ऊपर या नीचे गिर गया। पर क्या हम यह जानते हैं कि शेयर बाजार के ऊपर उठने या फिर नीचे गिरने की गणना कैसे की जाती है।
इस अंक में हम यही बताने की कोशिश करेंगे कि आखिर शेयर बाजारों में उतार चढ़ाव का आकलन कैसे किया जाता है। देश में मुख्य रूप से दो शेयर बाजार हैं: मुंबई स्थित बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई)। बीएसई में सूचीबद्ध कंपनियों के प्रदर्शन को सेंसेक्स से बताया जाता है जबकि एनएसई में इसे निफ्टी के नाम से जाना जाता है।
अगर हम कहते हैं कि सेंसेक्स ऊपर गया तो इसका मतलब होता है कि बीएसई में शामिल अधिकांश कंपनियों के शेयरों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। वहीं ठीक इसी तरह सेंसेक्स के नीचे लुढ़कने का मतलब होता है, इसमें शामिल कंपनियों के शेयरों के भाव नीचे गिरना।
सेंसेक्स का आकलन
बीएसई में सचीबद्ध 30 कंपनियों के शेयरों के प्रदर्शन के आधार पर सेंसेक्स का निर्धारण किया जाता है। इसके आकलन के लिए मुक्त बाजार पूंजीकरण विधि का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि यहां ध्यान रखना चाहिए कि सेंसेक्स के आकलन को सटीक बनाने के लिए समय समय पर इन 30 कंपनियों में बदलाव किया जाता है। अब इस तकनीक को जानने के पहले यह समझते हैं कि बाजार पूंजीकरण क्या है?
बाजार पूंजीकरण
शेयर के आधार पर किसी कंपनी का कुल मूल्य ही उस कंपनी का बाजार पूंजीकरण कहलाता है। किसी कंपनी का बाजार पूंजीकरण पता करने के लिए उस कंपनी के जारी किए गए कुल शेयरों की संख्या को कंपनी के एक शेयर के भाव से गुना कर दिया जाता है। कंपनी के बाजार पूंजीकरण के आधार पर ही यह तय किया जाता है कि कंपनी मिड-कैप, स्मॉल-कैप या फिर लार्ज-कैप है। बाजार पूंजीकरण को समझने के बाद हम मुक्त बाजार पूंजीकरण को समझने की कोशिश करेंगे।
मुक्त बाजार पूंजीकरण
किसी कंपनी के शेयर विभिन्न किस्म के निवेशकों के पास होते हैं। इनमें से कुछ शेयरों पर सरकार का कब्जा हो सकता है तो कुछ पर कंपनी के संस्थापक या फिर निदेशकों का। अब मुक्त या फ्री फ्लोट शेयर उन्हें कहते हैं जिनका कारोबार खुले बाजार में किया जाता है। यानी जिन्हें कोई भी निवेशक खरीद सकता है।
जब हम सेंसेक्स का आकलन करते हैं तो हम दरअसल इन्हीं शेयरों की चर्चा कर रहे होते हैं। मुक्त शेयर ऐसे शेयर होते हैं जिन पर कंपनी के संस्थापक, निदेशक या मालिक का कोई हक नहीं होता, जिनपर किसी व्यक्ति या इकाई की होल्डिंग्स का हक नहीं होता। जिनपर सरकार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), निजी कारोबारी इकाइयों, एसोशिएट या समूह कंपनियों कर्मचारी वेलफेयर ट्रस्ट का हिस्सा न हो।
साथ ही ऐसे शेयर जो लॉक्ड इन की श्रेणी में आते हैं और जिन्हें आम निवेशकों के लिए जारी नहीं किया जाता है, वे भी मुक्त शेयर नहीं कहलाते। हर कंपनी को बीएसई को संपूर्ण रिपोर्ट सौंपनी होती है कि उसके कितने शेयर किन किन लोगों के पास हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर बीएसई तय करती है कि कंपनी के मुक्त शेयर कितने हैं और कंपनी का मुक्त बाजार पूंजीकरण कितना है।
पूंजी बाजार का क्या कार्य है?
पूंजी बाजार अर्थव्यवस्था में पूंजी निर्माण को बढ़ाता है और इसमें शामिल हैं –
प्राथमिक बाजार एक ऐसा स्थान है जहां कंपनियों के नए प्रस्तावों को एक आरंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (आईपीओ) या अधिकार जारी करने के रूप में क्रियान्वित किया जाता है।
द्वितीयक बाजार एक ऐसा बाजार है जहां प्रतिभूतियों को प्राथमिक बाजार में जनता के लिए पेश किए जाने के बाद ट्रेड किया जाता है और/या स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध होता है। अधिकांश ट्रेडिंग इसी बाजार में की जाती है जिसमें इक्विटी बाजार और ऋण बाजार शामिल हैं।
एक इक्विटी शेयर क्या है?
एक इक्विटी शेयर स्वामित्व के प्रारूप को प्रदर्शित करता है। ऐसे एक शेयर का धारक कंपनी का एक सदस्य होता है और उसके पास मतदान का अधिकार होता है।
इसमें क्या जोखिम हैं?
इक्विटी शेयर "उच्च जोखिम, उच्च रिटर्न निवेश" होते हैं। इक्विटी निवेश और सभी अन्य निवेश विकल्पों में प्रमुख अंतर यह है कि जहां अन्य विकल्पों जैसे बैंक जमा, लघु बचत योजनाओं, डिबेंचर, बांड आदि से मिलने वाला लाभ निर्धारित और निश्चित होता है, वहीं इक्विटी निवेशों से होने वाली कमाई बेहद अनिश्चित और विविध होती है। सही समय पर ली गई एक अच्छी स्क्रिप काफी अच्छा रिटर्न दिला सकती है, अन्यथा रिटर्न बेहद कम भी हो सकता है या यह ऋणात्मक भी हो सकता है, यानी निवेश किया गया फ़ंड स्वयं भी धीरे धीरे ख़त्म हो सकता है। संक्षेप में, यदि स्थिर आय श्रेणी साधनों में निवेश काफी हद तक सुरक्षित और जोखिम मुक्त होता है, तो इक्विटी और संबंधित क्षेत्रों में निवेश जोखिम भरा माना जा सकता है।
लाभांश क्या है?
लाभांश, कंपनी द्वारा अपने निवेशकों में वितरित लाभ का एक हिस्सा होता है। इसे प्रायः शेयर अंकित मूल्य या पेड-अप वैल्यू (चुकता मूल्य) के प्रतिशत के रूप में घोषित किया जाता है।
एक बोनस शेयर क्या है?
कंपनियों द्वारा अपने शेयरधारकों के लिए पिछले वर्षों में अर्जित संचित लाभों के पूंजीकरण द्वारा निःशुल्क में जारी किए गए एक शेयर को बोनस शेयर कहा जाता है।
एक बांड क्या है?
एक बांड, किसी कंपनी या सरकार द्वारा इसके उधारदाताओं के लिए जारी किया गया एक वचनपत्र होता है। एक बांड ऋण का वह साक्ष्य है, जिस पर जारीकर्ता कंपनी बांडधारक को प्रायः निर्दिष्ट समयांतरालों के लिए ब्याज की एक निर्दिष्ट राशि का भुगतान करने का वादा करती है, और समाप्ति तिथि पर मूल ऋण चुकाने का वादा करती है। एक बांड निवेशक जारीकर्ता को धन उधार देता है और बदले में, जारीकर्ता एक निर्दिष्ट परिपक्वता तिथि पर ऋण राशि चुकाने का वादा करता है।
एक डिबेंचर क्या है?
यह प्रायः एक निश्चित ब्याज दर के साथ कंपनी द्वारा जारी किया गया एक बांड है जिसका भुगतान सामान्यतः निर्दिष्ट तिथियों पर छमाही रूप से किया जाता है और मूलधन का भुगतान एक विशेष तिथि पर डिबेंचरों को रिडीम करने (भुनाने द्वारा) पर किया जाता है। डिबेंचर्स को सामान्यतः डिबेंचर धारक के पक्ष में कंपनी की संपत्ति के एवज में सुरक्षित/प्रभारित किया जाता है।
एक स्टॉक एक्सचेंज क्या है?
एक स्टॉक एक्सचेंज वह स्थान है जहां क्रेता और विक्रेता एक व्यवस्थित ढंग से शेयरों में ट्रेड करने के लिए मिलते हैं। वर्तमान समय में देश में 25 मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज हैं जो प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 द्वारा शासित हैं।
मैं कौन से शेयर खरीद सकता हूं?
आप वे शेयर खरीद सकते हैं जो किसी भी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध हों।
खरीदना और बेचना क्या है?
ऐसे कई प्रकार के ऑर्डर हैं जिनके बारे में आप एक ब्रोकर को निर्देशित कर सकते हैं। सबसे सामान्य प्रकार का ऑर्डर, जो नियमित क्रय या विक्रय ऑर्डर है, उसे मार्केट (बाजार) ऑर्डर कहा जाता है। ऑर्डर का एक अन्य प्रकार एक लिमिट (सीमित) ऑर्डर है जिसमें आप ब्रोकर से केवल तभी ट्रेड करने के लिए कह सकते हैं यदि कीमत एक विशिष्ट स्तर तक पहुंचती है। एक स्टॉप (रोक) ऑर्डर में, आप महत्वपूर्ण हानि को रोकने के लिए ब्रोकर से अपने शेयरों को बेचने के लिए कह सकते हैं यदि मूल्य एक निश्चित स्तर तक गिर जाता है क्योंकि यदि यह उस स्तर तक गिरता है तो इसके आगे और गिरने की संभावना है और आपकी हानि बढ़ने की संभावना है।
मैं अपने ऑर्डर कैसे करुं?
फ़ोन के माध्यम से या जियोजित के ऑफ़िस में व्यक्तिगत रूप से आने के द्वारा या जियोजित द्वारा प्रदान की गई किसी भी अन्य सुविधा जैसे इंटरनेट ट्रेडिंग के माध्यम से ट्रेडिंग की जा सकती है। डीलर (जियोजित का कर्मचारी, जिसे स्टॉक एक्सचेंज ऑर्डर सिस्टम में निवेशकों के ऑर्डर इनपुट करने के लिए रखा गया है), कॉल करने वाले व्यक्ति की प्रामाणिकता की जांच करने और खाते में उपलब्ध मार्जिन की जांच करने के बाद स्टॉक एक्सचेंज सिस्टम में ऑर्डर दर्ज करेगा।
बुलिश (बढ़त) और बियरिश (मंदी) के रुझान का क्या तात्पर्य है?
जब बाजार ऊपर जाता है तो इसे बुलिश (बढ़त) का रुझान और जब बाजार नीचे जाता है तो इसे बियरिश (मंदी) का रुझान कहा जाता है।
एक पॉजिशन (स्थान) लेना क्या है?
जब आप किसी स्टॉक पर कार्य करते हैं और इसे खरीदते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप एक स्थान ले रहे हैं। पॉजिशन, अनुकूल मूल्य उतार-चढ़ाव की प्रत्याशा में एक निवेश में लगाए गए धन की राशि है। पॉजिशन दो प्रकार के होते हैं :-
लांग पॉजिशन (दीर्घ स्थितियां) वे हैं जिसका अधिकांश लोग प्रयोग करते हैं। जब आप लांग पॉजिशन खरीदते हैं, तो इसका अर्थ है कि आपको मूल्य में वृद्धि होने की आशंका है, और इस तरह आप लाभ प्राप्त करते हैं। लोग प्रायः बाद में उच्च कीमतों पर बेचने की उम्मीद से वर्तमान मूल्यों पर शेयर खरीदते हैं और इस प्रकार लाभ प्राप्त करते हैं।
शार्ट पॉजिशन (लघु स्थितियां) पेचीदा होती हैं। जब आप शार्ट पॉजिशन खरीदते हैं, तो आपको कीमत में गिरावट की आशंका होती है और गिरावट आपके लाभ का स्रोत है। शेयरों को पहले बेचा जाएगा और बाद में मूल्य गिरने पर उन्हें पुनः खरीदा जाएगा और वापस कर दिया जाएगा और अंतर, निवेशक का लाभ होता है। बेशक, निवेशक के लिए जिसने शेयर उधार लिए हैं, मूल्य के प्रत्याशा के समान न बढ़ने/घटने का जोखिम होता है, ऐसी स्थिति में वह शेयरों की पुनर्खरीद में नुकसान उठा सकते हैं।
इंडेक्स (सूचकांक) क्या है?
इंडेक्स (सूचकांक) एक स्टॉक मार्केट (शेयर बाजार) का वह सूचक है जिसे एक संपूर्ण बाजार या बाजार से ली गई प्रतिभूतियों के एक नमूने पर आधारित बाजार के एक खंड के प्रदर्शन की एक सांख्यिकीय माप के रूप में बनाया जाता है। इस प्रकार, एक इंडेक्स, बाजार के एक खंड या बाजार के समग्र प्रदर्शन का मूल्यांकन करने का एक साधन है। एक इंडेक्स समग्र बाजार उतार-चढ़ाव की माप है। एक सामान्य बाजार सूचक होने के अलावा, इंडेक्स, व्यक्तिगत पोर्टफ़ोलियो के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए प्रयुक्त एक मानक है। पेशेवर धन प्रबंधक हमेशा बाजार में बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करेंगे, यानी वे हमेशा इंडेक्स की तुलना में बेहतर करने की कोशिश करेंगे। उदाहरण के लिए, यदि एक पोर्टफ़ोलियो का मूल्य 10% बढ़ता है और वहीं इंडेक्स केवल 5% बढ़ता है, तो इसका अर्थ है कि पोर्टफ़ोलियो बाजार से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है।
हमारे यहां 2 प्रसिद्ध सूचकांक हैं, नामतः-
बीएसई सेंसिटिव (बीएसई सेंसेक्स) और
एस एंड पी निफ़्टी 50 (निफ़्टी)
बीएसई सेंसेक्स में 30 बड़ी पूंजी वाली (लार्ज- कैप) कंपनियां शामिल हैं। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, यह बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) पर एक प्रमुख इंडेक्स है।.
निफ़्टी में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर 50 बड़ी पूंजी वाली (लार्ज- कैप) कंपनियां शामिल हैं।
एक डिपॉजिटरी क्या है?
एक डिपॉजिटरी की तुलना एक बैंक से की जा सकती है। एक डिपॉजिटरी, इलेक्ट्रॉन
ब्रोकरेज के अलावा वे अतिरिक्त प्रभार/शुल्क कौन कौन से हैं, जो निवेशक पर लगाए जा सकते हैं?
ट्रेडिंग सदस्य को निम्न का भुगतान करना पड़ सकता है:
प्रतिभूति लेनदेन कर
लागू सेवा कर
जी एस टी
एनएसई द्वारा लिए गए लेनदेन प्रभार (शुल्क), स्टांप ड्यूटी और लेनदेन से सीधे संबंधित अन्य प्रभार।
एनएसई द्वारा लिए गए लेनदेन प्रभार (शुल्क), स्टांप ड्यूटी और लेनदेन से सीधे संबंधित अन्य प्रभार।
मार्जिन का भुगतान कैसे किया जाता है?
एक्सचेंज, समय-समय पर मार्जिन के नियम निर्धारित करता है, जिनकी गणना वर्तमान में जोखिम मॉडल के मूल्य के आधार पर की जाती है। निवेशक द्वारा ऑर्डर देने से पहले मार्जिन का भुगतान किया जाना चाहिए।
निवेशक के क्या दायित्व हैं?
निम्न दायित्व हैं –
एक उचित सदस्य-संघटक अनुबंध पर हस्ताक्षर करने का
एक मान्य अनुबंध या खरीद/बिक्री नोट रखने का
समय पर प्रतिभूति डिलिवर करने और भुगतान करने का
ट्रेड से पहले मार्जिन प्रदान करने का
निवेशक के क्या अधिकार हैं?
निम्नलिखित प्राप्त करने का अधिकार –
मूल्य/लगाए गए ब्रोकरेज शुल्क का प्रमाण, समय पर पैसा/शेयर, खातों के विवरण और ट्रेडिंग सदस्य से कंट्रैक्ट नोट।
कर की दृष्टि से भारतीय इक्विटी में निवेश करने के निहितार्थ क्या हैं?
निवेश लाभों पर कर की दरों को दीर्घावधि और अल्पावधि पूंजी लाभों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
दीर्घावधि पूंजी लाभ
वे दीर्घावधि निवेश जिन्हें 12 महीने से अधिक के लिए होल्ड किया जाता है, दीर्घावधि पूंजी परिसंपत्तियां कहलाते हैं। ऐसी परिसंपत्तियों की बिक्री से प्राप्त लाभ को दीर्घावधि पूंजी लाभ (एलटीसीजी) कहा जाता है जिस पर नवीनतम बजट अधिसूचना के अनुसार कोई भी कर नहीं लगेगा।
अल्पावधि पूंजी लाभ
वे शेयर जिन्हें 12 महीने से कम के लिए होल्ड किया जाता है, अल्पावधि पूंजी परिसंपत्तियां कहलाते हैं, जिन पर नवीनतम बजट अधिसूचना के अनुसार 10% कर लगेगा।
एक पोर्टफ़ोलियो मैनेजर किसे कहते है?
कोई भी व्यक्ति जो एक ग्राहक के साथ एक अनुबंध या व्यवस्था के अनुसार, ग्राहक के फ़ंड या प्रतिभूतियों के पोर्टफ़ोलियो के प्रबंधन या प्रशासन के लिए सलाह देता है या निर्देशन करता है या ग्राहक की ओर से संचालन करता है (चाहे एक विवेकाधीन पोर्टफ़ोलियो मैनेजर हो या न हो), उसे पोर्टफ़ोलियो मैनेजर कहते है। जियोजित एक ‘सेबी’ पंजीकृत पोर्टफ़ोलियो मैनेजर (पंजीकरण संख्या – आईएनपी 000000316) है जो उन निवासियों को, जो न्यूनतम 10 लाख रुपये का निवेश कर सकते हैं और उन गैर-निवासियों को, जो न्यूनतम 25 लाख रुपये का निवेश कर सकते हैं, विवेकाधीन पोर्टफ़ोलियो प्रबंधन सेवाएं प्रदान करता है।
शेयर बाजार में निवेश
यदि आपको शेयर बाजार के बारे में कम जानकारी है अथवा आप इस बाजार के नये खिलाड़ी हैं या आप चाहते तो हैं कि बाजार में निवेश करें मगर जानते नहीं कि क्या करें और कैसे करें तो आज हम आपको कुछ टिप्स देते हैं:
टिप्स से दूर रहें: आप भी कहेंगे कि यह क्या घालमेल है। साथ ही कह रहे हैं कि मैं आपको टिप्स देता हूं और साथ ही कह रहें हैं कि टिप्स से दूर रहें। वास्तव में मैं आपको किन कंपनियों के शेयरों में निवेश करें ऐसे टिप्स नहीं देने वाला। यहां मैं आपको यह बता रहा हूं कि कैसे शेयर बाजार में निवेश करें। तो सबसे पहली बात मित्रों, रिश्तेदारों और ब्रोकरों के बताये टिप्स पर अथवा बाजार मैं फैली अफवाहों के आधार पर निवेश न करें। यह बहुत ही खतरनाक हो सकता है।
स्वयं को शिक्षित करें: बैलेंश शीट तथा कंपनियों के नतीजों को पढ़ना और समझना सीखें। यदि आपकी शिक्षा कॉमर्स स्ट्रीम से नहीं है तो थोड़ा और अधिक सावधान रहें। बाजार के बारे में अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करें। नियमित रूप से इक्नॉमिक टाइम्स जैसे समाचार पत्र पड़ें और CNBC आवाज जैसे चैनल देखें। इसके अलावा इंटरनेट पर निवेश संबधी जानकारियां एकत्रित करें। जब आपको बाजार के बारे में आत्मविश्वास जागने लगे तो भी निवेश करने से पहले दो तीन कंपनियों को चुन लें जहां आपको लगे कि निवेश करना सही रहेगा। उसके बाद उन कंपनियों के भावों पर नियमित नजर रखें। कम से कम एक महीना अपनी इन कंपनियों पर नजर रखें। यदि लगे कि आपका चुनाव सही था तो आप बाजार में जाने के बारे में सोच सकते हैं।
शुरुआत कम पूंजी से करें: शुरुआत में नाम मात्र का निवेश करें और अनुभव प्राप्त करें। एकदम से बड़ी रकम दांव पर न लागायें। वैसे भी बाजार में एक साथ बड़ा निवेश करने से बचना चाहिये और अपनी पूंजॊ का एक एक हिस्सा नियमित रूप से निवेश करना चाहिये।
निवेश में धोखे
आज आपको कुछ साधारण किस्म के धोखों से बचने के उपायों के बारे में बताते हैं जो कि अक्सर आपके एजेंट Agents कर जाते हैं।
मेरे एक मित्र ने निवेश Invest तो किया था म्यूचल फंड Mutual Fund में मगर एजेंट Agent ने उन्हें यूलिप Ulip बेच दिया। कई बार ऐसा होता है कि एजेंट Agent सपने तो किसी और प्लान या प्रोडक्ट के दिखाते हैं मगर जब वास्तव में आपके पास निवेश के कागज पहुंचते हैं तो उसमें कुछ और ही निकलता है। कई निवेशक Investors तो आलस के कारण या जानकारी न होने के कारण प्राप्त कागजों को देखते भी नहीं कि उन्हें जो निवेश के कागजात मिले हैं उनमें सब कुछ सही है कि नहीं।
आपको हमने पहले भी इस बात के लिये आगाह किया था कि कैसे कुछ एजेंट Agent बड़े बड़े वादे करके कुछ भी बेच देते हैं। यह भी बताया था कि किस तरह से अपने एजेंट का चुनाव करें। इसके बाद जब आप कोई निवेश करते हैं निवेश के कगज प्राप्त होने के बाद क्या करना है आज हम आपको वही बताना चाहते हैं।
जिस स्कीम में निवेश किया था क्या यह वही है
बहुत जरूरी है यह जांचना कि आपने जिस स्कीम में देखभाल कर और अपनी जरूरत के हिसाब से निवेश किया था क्या प्राप्त कागजात उसी स्कीम में निवेश हुए हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि एजेंट ने अपनी कमीशन के चक्कर में आपको कोई ऐसा प्लान दे दिया हो जो आपकी जरूरतों के मुताबिक ही न हो। यहां म्यूचल फंड और यूलिप (ULIP) में अंतर को समझना भी जरूरी है। म्यूचल फंड Mutual Funds मध्यम समय (पांच से सात वर्ष) के लिये निवेश के लिये उत्तम हैं और यूलिप Ulip दस साल या उससे अधिक समय के लिये। यूलिप Ulip में पहले वर्ष में ज्यादा चार्जेस कटते हैं मगर लम्बी अवधी में यूलिप म्यूचल फंड से भी ज्यादा फायदेमंद साबित होता है।
बाकी जानकारी भी देखें
अच्छी तरह से देख लें कि आपका नाम, आपका पता, जन्म की तारीख, संपर्क नंबर, नामित व्यक्ति (nominee) का नाम जैसी जरूरी जानकारी सही से भरी है कि नहीं। याद रखें कि यदि आपने कभी कोई बीमा या यूलिप लिया है और इनमें से कोई जानकारी सही नहीं है तो क्लेम लेने में कई तरह की दिक्कतें भी आ सकती हैं। कुछ कंपनियां आपके द्वारा भेजे गये फार्म की कापी भी करवा कर आपको भेजतीं हैं उसे भी अच्छी तरह जांच लें कि आपके फार्म भरने के बद एजेंट ने उस में कोई बदलाव तो नहीं किये हैं
प्लान के नियम व शर्तें
बहुत लंबी, उबाउ और कानूनी भाषा मे लिखे यह नियम व शर्तें जरूर पढ़ें। कुछ समझ न आये तो किसी जानकार से उसके बारे में जानने से परहेज न करें। अधिकतर कंपनियां कस्टमर्स केयर नंबर भी देतीं हैं वहां संपर्क करें या स्वंय कंपनी के कार्यालय/शाखा में जायें।
शुल्क तथा प्रभार
यह भी देख लें कि जैसा बताया गया था क्या शुल्क तथा प्रभार वैसे ही लगे हैं या ज्यादा लगे हैं। भविष्य में लगने वाले प्रभारों की भी जानकारी लें।
इस सब को देखने के बाद और सब कुछ सही पाने के बाद अपने कागजों को संभाल कर रखें। हो सके तो किसी प्लास्टिक की फाइल या फोल्डर में ही रखें। लकड़ी की अलमारी के बजाये लोहे की अलमारी में रखना ज्यादा सुरक्षित है। जहां भी रखें अपने घर के जिम्मेदार व्यक्तियों को अवश्य बतायें। अपने एजेंट का विजिटिंग कार्ड अपने निवेश के कागजों के साथ रखें जिससे कि समय असमय संपर्क करने में आसानी रहे।
अगली बार आपको बतायेंगे कि यदि आपको एजेंट आपको धोखा दे जाये तो उससे कैसे निबटें।
निवेश के लिये पसन्दीदा शब्द है - यूलिप
आजकल लम्बी अवधि के लिये निवेश करने वालों के लिये यूलिप ULIP (Unit-Linked Insurance Plan) एक पसन्दीदा शब्द है। इसके उचित कारण भी हैं।
यूलिप ULIP निवेश का एक बहुत अच्छा जरिया है यदि आप लम्बी अवधि के लिये निवेशित रहना चहते हैं यानि 10 से 20 वर्षों के लिये । यदि आप कम अवधि के लिये निवेश करना चाहते हैं तो बेहतर है कि किसी कंसल्टेंट की सहायता से म्यूचल फंड Mutual Fund में निवेश करें।
यूलिप और म्यूचल फंड में मुख्य अंतर है अधिभरों (charges) का ढांचा। यूलिप और म्यूचल फंड में बाकी सब समान होते हुए भी यूलिप में निवेश बेहतर हो सकता है अधिभारों में कमी के कारण । FMC फंड मेनेजमेंट चार्ज (इसकी हिंदी शायद होगी कोष प्रबंधन अधिभार) आमतौर पर यूलिप में 1.5% (किसी किसी कम्पनी में यह 0.8% तक कम होता है) होता है जबकी म्यूचल फंड में आमतौर पर FMC 2.5% के आसपास होता है।
इसीलिये लम्बी अवधि में जब आपका फंड बहुत बड़ा हो जाता है तो 1% का अंतर भी बहुत मायने रखता है और इससे यूलिप के शुरुआती खर्चों की भी आपूर्ती हो जाती है।
यूलिप और म्यूचल फंड में निवेश के दो उदाहरण लेते हैं जो कि 10% की समान दर से बढ़ रहे हैं।
एक आदमी 20 वर्ष के लिये 5 लाख रु के बीमा के साथ यूलिप प्लान लेता है जिसमें वह 1 लाख रु प्रति वर्ष निवेश करता है यदि उसका निवेश 10% की दर से बढ़ता है तो मियाद खत्म होने पर उसे रु 52,21,205/- मिलेंगे |
यही निवेश यदि म्यूचल फंड में किया जाता है और साथ में समान राशि की टर्म इंशोरेंस भी ली जाती है तो 10% की वृद्धी दर पर सभी समयोजनों के बाद मियाद खत्म होने पर रु 48,25,785/- मिलेंगे।
इस प्रकार आप देख सकते हैं कि 1% का अधिभारों में छोटा सा अंतर आपके धन को कितना अधिक बढ़ा सकता है।
यूलिप में आपको बीमा प्लान, बच्चों के प्लान तथा पेंशन प्लान भी मिल जायेंगे। आप इनमें रु 1500/- प्रति माह के न्यूनतम निवेश से भी शुरुआत कर सकते हैं। अधिकतर कम्पनियां ECS की सुविधा भी प्रदान करती हैं।
कैसे समझें नतीजे
आज आईटी यानी सूचना तकनीक की विशाल कम्पनी इन्फोसिस Infosys ने अपने तिमाही नतीजे पेश किये। आइये जाने कि इन नतीजों को कैसे समझा जाये।
जहां बैलेंस शीट (आपको जानकर हैरानी होगी कि बैलेंश शीट को हिंदी में चिट्ठा भी कहा जाता है) कम्पनी की सेहत का आईना होती है वहीं प्रॉफिट एण्ड लॉस एकाऊंट (लाभ हानि खाता) कम्पनी की प्रगति का मापक होता है। उपर दिये लिंक से आप इन्फोसिस के तिमाही नतीजे विस्तार से पीडीएफ फाईल में डाऊनलोड कर सकते हैं अथवा यहां दी हुई इमेज फाईल से इसे समझ सकते हैं।
सॉफ्टवेयर सेवाओं एवं उत्पादों से आय
अधिकतर इस जगह मद होती है कुल बिक्री से आय (Income from Total Sale) : यहां आपको मिलेगी कम्पनी द्वारा दी गई तिमाही में की गई माल अथवा सेवाओं की बिक्री की रकम। कम्पनी कितनी गति से बढ़ (Growth कर) रही है यह इसी का सूचक है। यहां आप देखेंगे कि पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले इन्फोसिस लगभग 51% बढ़ी है।
सॉफ्टवेयर संवर्धन लागत
अधिकतर इस जगह मद होती है कुल क्रय लागत: यहां आपको मिलेगी कच्चे माल अथवा सेवाओं की आपूर्ति पर खर्च की गयी रकम। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि लागत की रकम यदि बिक्री की रकम के मुकाबले कम अनुपात में बढ़ती है तो यह कम्पनी के सेहत के लिये अच्छा है। यहां इन्फोसिस की लागत 53.89% से बढ़ी है।
कुल लाभ
कुल लाभ बिक्री और क्रय का अन्तर है। यहां कुल लाभ 47% बढ़ा है।
प्रभावित खर्चे
यहां कच्चे माल के अलावा माल अथवा सेवाओं के उत्पादन पर किये गये अन्य सभी खर्चे लिये जाते हैं। ध्यान रहे कि यह खर्चे जरूरी नहीं कि माल के उत्पाद के अनुपात में ही बढ़ें। क्योंकि कुछ खर्चे जैसे कि बिलडिंग का किराया या स्टाफ की तन्ख्वाह का माल के उत्पाद से कोई सीधा संबंध नहीं होता है। यहां आने वाले मद इस पर भी निर्भर करते हैं कि कम्पनी किस क्षेत्र में कार्यरत है। इन्फोसिस के खर्चे 42% से बढ़े हैं।
ब्याज एवं अवमूल्यन
इन खर्चों का उत्पादन प्रक्रिया से कोई संबंध नहीं होता इसलिये इन्हे अलग से गिना जाता है। आयकर की गणना में भी इनका अलग से महत्व है। ब्याज उधार ली गई पूजी पर दिया जाता है। बड़ी पूंजीगत कम्पनियां जहां बड़ी रकम उधार की पूंजी से लगी होती है वहां इस मद का मह्त्व बढ़ जाता है और ब्याज की दरों में परिवर्तन कम्पनी के लाभ पर असरकारक हो सकता है। यहीं यह भी देखने वाली बात है कि जैसे जैसे कम्पनी अधिक लाभ कमा कर उधार चुकता करती जाती है ब्याज की रकम कम होती जाती है और लाभ बढ़ते जाते हैं। अवमूल्यन वास्तव में एक काल्पनिक खर्चा है और कम्पनी इसकी अदायगी नहीं करती।
अन्य आय
ध्यान रहे की छोटी और महत्वहीन सी यह रकम आपको बहुत बड़ा धोखा दे सकती है। कभी कभी कम्पनी अपने किसी पुराने निवेश, प्लांट अथवा सम्पत्ती को बेच कर मोटी रकम इस मद में कमा लेती है मगर इस मद में आई बढ़ोतरी वास्तव में कम्पनी की आय में स्थायी बढ़ोतरी नहीं करती। कई बार शुद्ध आय में असाधारण बढ़ोतरी देख कर आनन फानन में कोई शेयर खरीद लिया जाता है मगर यह जरूर जांच लेना चाहिये कि आय में यह बढ़ोतरी कम्पनी के वास्तविक कर्यकलापों के कारण हुई है या अन्य आय के द्वारा।
शुद्ध आय
यह वो रकम है जो करों को चुकाने के बाद कम्पनी के पास बचती है। हर निवेशक का वास्ता इस रकम से होता है। इस रकम का एक हिस्सा निवेशक को लाभांश के रूप मे मिलता है और शेष कम्पनी की पूंजी में जमा हो जाता है यानी इसे कम्पनी के विस्तार, उधार चुकाने अथवा दूसरी कम्पनियों का अधिग्रहण करने के लिये प्रयोग किया जा सकता है। यहां इन्फोसिस के शुद्ध लाभ में 51% की वृद्धि हुई है।
कैसे गिनें प्रति शेयर आय
यानि प्रति शेयर आय कैसे गिनी जाती है और इससे कंपनी की आर्थिक सेहत को कैसे जाना जाता है, आज इसके बारे में विचार करते हैं।
कंपनी की कुल शुद्ध लाभ से हर शेयर के हिस्से में कितनी रकम आयेगी उसे ही Earning per Share बोलग प्रति शेयर आय कहते हैं। इसे गिनेंगे
शुद्ध लाभ / कुल शेयरों की संख्या
यदि 10 करोड़ रु की पूंजी वाली कंपनी जिसके 10 रु की कीमत वाले 1 करोड़ शेयर हों और वह कंपनी 20 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाती है तो उसकी प्रति शेयर आय 20 रुपये होगी:
20 करोड़ / 1 करोड़ = 20
यदि कोई कंपनी केवल तिमाही नतीजे ही घोषित करती है तो उन नतीजों के आधार पर कंपनी के पूरे साल के प्रति शेयर आय की भी गणना की जा सकती है।
उपरोक्त उदाहरण में यदि कंपनी आने वाली तिमाही के लिये 6 करोड़ रु का शुद्ध लाभ घोषित करती है तो हम अंदाज लगा सकते हैं कि कंपनी की प्रति शेयर आय आने वाले साल में बढ़ कर 24 रु हो जायेगी। इसी प्रकार अर्धवार्षिक परिणामों को देख कर भी वार्षिक प्रति शेयर आय की भी गणना की जा सकती है।
इस बात का ध्यान रहे कि यदि कंपनी तेजी से विकास कर रही है या कंपनी का सीजनल काम है जो कि पूरे वर्ष एक सा नहीं रहता तो तिमाही नतीजों से वार्षिक प्रति शेयर आय की भविष्यवाणी गलत भी साबित हो सकती है।
एक बात और भी घ्यान देने लायक है कि यदि कंपनी ने वर्तमान तिमाही में कोई ऐसी बड़ी डील की है जिसके दोहराव की संभावना नहीं है तो उस डील से हुए लाभ या हानि समायोजित करके ही वार्षिक आय की गणना की जानी चाहिये।
ज्यादातर शेयरों की कीमतें चालू अथवा आने वाले साल के प्रति शेयर आय की संभावनाओं पर निर्भर करतीं हैं।
कोई भी शेयर बाजार में सस्ता है या मंहगा अथवा किसी शेयर की कीमतों में कितनी बढ़ौतरी की संभावनायें हैं इसे जानने का बहुत बड़ा मानक है प्रति शेयर आय EPS और प्रति शेयर कीमत अनुपात यानि P/E Ratio.
शेयरबाजार और बैल
शेयर बाजार और बैल मे क्या सम्बन्ध ? क्यों शेयर बाजार के समाचारों के साथ बैल को भी चित्रित किया जाता है।
शेयर बाजार की अपनी एक भाषा होती है। जो लोग यह सोचते हैं कि बाजार तेजी के रुख में रहेगा तो लाभ की आशा में वे और शेयर खरीदना चाहते हैं इसीलिये उन्हें तेजड़िये कहते हैं। जो सोचते हैं कि बाजार में कीमतें गिरेंगी वे शेयरों को बेचना चाहते हैं तो उन्हें कहते हैं मदड़िये। इन्ही तेजड़ियों को बाजार में बुल्स यानी बैल कहा जाता है तथा मंदड़ियों को बियर यानी भालू। इसी लिये जब भी बाजार में तेजी आती है तो अगले दिन सेंसेक्स के ग्राफ के साथ बैल को चित्रित किया जाता है और जब बाजार तेजी से गिरते हैं तो भालू का चित्र दिखाया जाता है। मान्यता है कि यह नाम इस जानवरों के हमला करने के तरीके से पड़ा। जब भी बैल हमला करता है तो अपने शिकार को नीचे से उठा कर उछाल देता है जबकि भालू अपने शिकार को हमेशा पंजों से नीचे की ओर दबाता है।
स्टॉक मूल्य हर दिन सेट कर रहे हैं कैसे?
किसी भी समय, किसी इक्विटी के मूल्य का निर्धारण आपूर्ति और मांग का परिणाम है. आपूर्ति किसी निश्चित समय पर बिक्री के लिए प्रस्तुत शेयरों की संख्या है. मांग बिल्कुल उसी समय निवेशक द्वारा खरीदने की इच्छा वाले शेयरों की संख्या है. शेयर की कीमत संतुलन हासिल करने और उसे बनाए रखने के लिए बदलती रहती है.
जब भावी खरीदारों की संख्या विक्रेताओं की संख्या से अधिक हो, तो मूल्य बढ़ता है.अत: उच्च विक्रय मूल्य से आकर्षित विक्रेता बाज़ार में प्रवेश करते हैं और खरीदार बाहर जाते हैं, जिससे खरीदारों और विक्रेताओं के बीच संतुलन हासिल होता है. जब विक्रेताओं की संख्या खरीदारों की संख्या से कम होती है, तो मूल्य गिर जाता है. अंतः खरीदार प्रवेश करते हैं और विक्रेता चले जाते हैं, दुबारा संतुलन हासिल होता है.
आई.पी.ओ ये शब्द मर्केट मे अनेक बार सुनने को मिलता है! आई.पी.ओ मे वे शेयर आते है, जो किसी शेयर धारक से न खरीद कर सीधे कम्पनी से खरीदे जाते है, इसे ही प्राइमरी मर्केट कह्ते है!वैसे बाद मे शेयरधारक इनमे क्रय- विक्रय करते है, और फिर वो सैकण्डरी मर्केट कहलाता है!
यदि औसत या कमजोर कम्पनी क आई.पी.ओ ज्यादा ऊची कीमत पर आता है, तो स्वभाविक है कि ज्यादा लोग शेयर नही खरीदेगे और मूल्य नीचे आयेगा, यदि अच्छी कम्प्नी का आई.पी.ओ कम या औसत मूल्य पर आता है! तो निश्चित ही शेयरो कि बिक्री अधिक होगी और कीमत भी बढेगी !
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई)
बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज भारत और एशिया का सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है। इसकी स्थापना १८७५ मे हुई थी। भारत को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजार में अपना श्रेष्ठ स्थान दिलाने में बीएसई की अहम भूमिका है। एशिया के सबसे प्राचीन और देश के प्रथम स्टॉक एक्सचेंज को -बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज सिक्युरिटीज कांट्रेक्ट रेगुलेशन एक्ट १९५६ के तहत स्थाई मान्यता मिली है
मैनेजिंग डायरेक्टर के नेतृत्व में डायरेक्टर्स बोर्ड द्वारा एक्सचेंज का संचालन होता है । इस बोर्ड में प्रतिष्ठित प्रोफेशनल्स, ट्रेडिंग सदस्यों के प्रतिनिधियों और सार्वजनिक प्रतिनिधियों का समावेश है । एक्सचेंज भारत के छोटे - बड़े शहरों में अपनी उपस्थिति के साथ राष्ट्रीय स्तर पर फैला हुआ है । एक्सचेंज में `ट्रेडिंग राइट' और `ओनरशिप राइट' एक दूसरे से अलग है । ऐसी परिस्थिती में निवेशकों के हितों पर विशेष सावधानी बरती जाती है । एक्सचेंज इक्विटी, डेब्ट तथा प्युचर्स और ऑप्शन के व्यापार के लिए ढांचा एवं पारदर्शक ट्रेडिंग सिस्टम सुनिश्चित करता है । बीएसई की आनलाइन ट्रेडिंग प्रणाली बेहतरीन गुणवत्तावाली है ।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज
यह भारत का सबसे बड़ा और तकनीकी रूप से अग्रणी स्टॉक एक्सचेंज है। यह मुंबई में स्थित है। इसकी स्थापना 1992 मे हुई थी। कारोबार के लिहाज से यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है। इसके वीसैट (VSAT) टर्मिनल भारत के 320 शहरों तक फैले हुए हैं।